बिना दवा खाए प्राकृतिक तरीके से कैसे स्वस्थ रहे

बिना दवा खाए प्राकृतिक तरीके से कैसे स्वस्थ रहे


स्वारस्य बहुत बड़ा धन है। चरित्र के बाद इसी का स्थान आता है। अगर जीवन में कोई कुछ करना चाहता है. कुछ बनना चाहता है, तो चरित्रवान होने के साथ-साथ स्वस्थ होना भी जरूरी है बहुत से लोग स्वास्थ्य के ऊपर ध्यान नहीं
देते है और धन के पीछे भागते रहते हैं और जब अस्वस्थ हो जाते हैं तब धन भी नहीं कमा सकते हैं, चिकित्सा में धन खर्च ही होता है और दुख भी भोगना पड़ता है। अतःसबसे पहले स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। जब स्वस्थ रहेंगे तभी धन कमा सकेंगे।
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धन का उपयोग कर सकेंगे। मैं एक ऐसे धनी सेठ को जानता हूँ जिसने अपने स्वास्थ्य को गवांकर करोड़ों की सम्पत्ति अर्जित की। आज उसके कई व्यवसाय हैं,उद्योग है। उसकी दैनिक आमदनी 20-25 हजार रुपये है लेकिन वह उन रुपयों को उपयोग नहीं कर सकता। यह उच्च रक्तचाप, मधुमेह तथा
अम्लपित्त रोग से ग्रस्त है, नेत्र ज्योति भी क्षीण हो गयी है। उच्चरक्तचाप केकारण नमक का सेवन नहीं कर सकता। मधुमेह के कारण मीठी चीजें नहीं खा सकता। अम्लपित्त के कारण तले-भुने मिर्च-मसालेदार खट्टे पदार्थ महीं खा सकता। आँखों से ठीक से दिखाई भी नहीं पड़ता। उसके सभी रोग खतरनाक अवस्था में हैं। रात में नींद भी नहीं आती। पत्नी के योग्य नहीं। आज
उसके पास सुख के सभी साधन है पर सुख नहीं है। प्रचुर सम्पत्ति होने के बावजूद वह स्वास्थ्य नहीं खरीद सकता है। अगर समय रहते वह अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दिया होता, तो शायद आज उसकी यह स्थिति नहीं होती। बहुत लोग हमेशा
जवान रहना चाहते हैं, स्वस्थ रहना चाहते हैं पर उन चीजों को नहीं जानते कि कैसे स्वस्थ रहा जा सकता है। उन लोगों के हितार्थ यहाँ मैं स्वस्थ रहने के प्राकृतिक तरीको एवं स्वर्णिम सूत्रों 
का उल्लेख कर रहा हूँ। इनको जीवन में अपनाकर अपना कायाकल्प किया जा सकता है, हमेशा स्वस्थ रहा जा सकता है। 

हमेशा स्वस्थ रहने के नियम:-

सदा स्वस्थ रहने के इच्छुक मित्रों को इन नियमों का सदा पालन करना चाहिए:-

1 -जल्दी सोना और  जल्दी उठना शुरू करें:-

 प्रातःचार-पांच बजे तक अवश्य विस्तर से उठ जाए और रातनो-वस बजे तक अवश्य सो जाए। अष्टागहृदय में कहा गया है कि स्वास्थ्य और आयुकी रक्षा
के लिए ब्रह्ममुहूर्त (भोर बेला प्रातः 4 बजे) उठे।
रात में देर से सोना और सुबह देर से जागना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है
हमारे जो भाई रात में11-12 बजे सोते है और सुबह 8 -9 बजे जागते हैं उन भाइयों को अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाना होगा।
रात में जल्दी सोना और सुबह जल्दी जागना मनुष्य को स्वस्थ
और बुद्धिमान बनाता है।
प्रतिदिन 6 से 7 घंटे अवश्य सोना चाहिए। गर्मी के समय को छोड़कर अन्य मौसमो में दिन में नहीं सोना चाहिए। 
भरपूर नींद लेने से चिंता थकावट दूर होती है ।मन को शांति मिलती है। शरीर में चुस्ती फुर्ती बनी रहती है ।ठीक समय पर और नियम अनुसार सोने से शरीर पुष्ट होता है ।
सोने के पहले हाथ पावं ठंडे पानी से धो लेना चाहिए ,और भी साफ कर लेना चाहिए। 
चिंता क्रोध रहित होकर खुशी एवं सुख मुद्रा में सोना चाहिए। सोने के पहले अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए।
 उत्तर दिशा की और शिर कभी भी कर के नहीं सोना चाहिए। प्रात काल उठकर सबसे पहले अपने हाथों को देखना चाहिए। क्योंकि हाथ के अगले भाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती, और मूल में ब्रह्मा का वास होता है। ऐसी मान्यता है ।
धरती पर पैर रखने के समय धरती को प्रणाम करना चाहिए।

1a - सुबह उषापान करें :-

रात में ताम्बे के बर्तन में पानी भरकर ढककर रख दें। सुबह
उठकर कुल्ला करके उसे पी जाएं। अगर ताम्बा का बर्तन न हो तो कोई बात नहीं एक ग्लास ताजा पानी ही पी लें। आप चाहें तो इसमें एक नीबू का रस भी मिला सकते हैं। पर शौच जाने से पूर्व सुबह पानी जरूर पीयें। सुबह उठकर
कुल्ला करने के बाद पानी पीना ही ऊषापान है। यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। इससे शौच भी खुल कर होता है।

1a -मल मूत्र का त्याग करें:-

 मलमूत्र त्याग करते समय मौन धारण किये रहना चाहिए तथा शरीर के अंगों को संकुचित किये हुए रहना चाहिए तथा मल
स्वतः निकलने देना चाहिए। मल त्याग के लिए जोर नहीं लगाना चाहिए।
मलत्याग के समय जोर लगाने स बवासीर, fistula आदि रोग होने का डर रहता है।

1c - रोज सुबह शाम जरूर टहले :-

सुबह-शाम खुली हवा में टहला करें। यह स्वास्थ्य के लिए बड़ा लाभदायक है।
इससे कब्ज रक्तचाप, अनिद्रा मधुमेह आदि अनेक रोग दूर होते है तथा मन ओर प्राणो में ताजी हवा एवं शक्ति का संचार होता है। यह एक अच्छा व्यायाम है। अत प्रातः-सायं टहलकर व्यायाम के सारे लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। 

1d -रोज व्यायाम करें :- 

 व्यायाम करने से शरीर और मन में हल्का पन आता है काम
करने की शक्ति बढती है, भोजन पचाने की क्षमता बढ़ती है । खाया-पीया अन्न शरीर को लगता है,। चेहरे पर चमक आती है । मोटापा कम होता है । शरीर के सभी अंग मजबूत और बलिष्ठ हो जाते हैं। व्यायाम कई प्रकार के है। आपको जो व्यायाम, आसान अच्छा लगे उसे कर सकते है।

2 - स्वस्थ रहने के लिए चिन्ता  का त्याग करें :-

चिन्ता करना स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। चिन्ता से बड़ा दुश्मन मनुष्य का कोई है ही नहीं चिन्ता चिता समान होती है। चिता मरने के बाद मनुष्य को जलाती है परन्तु चिन्ता जीवित ही जला देती है। 
संत कबीर ने भी कहा है :-
चिन्ता से चतुराई घटे. दुख से घटे शरीर।
पाप से धनलक्षमी घटे, कह गये दास कबीर।।
चिन्ता से अनिद्रा, रक्तचाप, हृदयरोग, स्मरणशक्ति हास आदि कई रोग उत्पन्न होते हैं। बहुत से लोगों का रोग तो छोटा होता है लेकिन चिन्ता करके लोग उसे बड़ा बना लेते हैं। मान लीलिए आपके पेट में हल्का दर्द है।
अगर आप दर्द पर ध्यान न देकर मित्रों-सम्बन्धियों से वार्तालाप अथवा अन्य किसी कार्य में व्यस्त रहे
तो दर्द कम महसूस होगा या नहीं महसूस होगा. लेकिन अगर सब काम छोड़कर दर्द के बारे में ही सोचना शुरू कर दें तो दर्द अधिक महसूस होगा। हो सकता है आपको तुरन्त औषधि लेनी पड़े अथवा अस्पताल में भर्ती होना पड़े।
हमारे कई युवक मित्रों को स्वप्न दोष होता है। अथवा हस्तमैथुन करते हैं। स्वप्न दोष अथवा हस्तमैथुन से हानि हो या न हो पर चिन्ता करने से हानि अवश्य होती है। मान लीजिए अगर हानि 10 प्रतिशत होती है तो चिन्ता करके
उसे 100 प्रतिशत बना लेते हैं।

2a. क्रोध से भी बचें :-

 क्रोध भी मनुष्य का बड़ा शत्रु है। क्रोध करने से विवेक नष्ट
होता है और क्रोध के वश में होकर मनुष्य वह कार्य कर सकता है जिसे बिना क्रोध के कभी नहीं कर सकता है। क्रोध के वश में ही होकर भाई माई को मार डालता है, पुत्र पिता को मार डालता है। क्रोध करने से पित्त कुपित होता है और
अम्लपित्त नामक दुखदायी रोग की उत्पत्ति होती है। क्रोध का प्रभाव हमारे स्नायु तंत्र पर भी पड़ता है। क्रोध के कारण स्नायु संस्थान कमजोर हो जाता है। क्रोध करने से स्मरणशक्ति कमजोर हो जाती है। क्रोध से अनिद्रा, रक्तचाप, हृदय
रोग, आदि अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। गुस्सा करने से स्मृति का नाश होता है ।स्मृति को नाश हो जाने से बुद्धि का नाश होता है। और बुद्धि के नाश हो जाने मनुष्य का पतन हो जाता है।

2b  -काम, क्रोध और लोभ :-

 ये तीनों नरक के द्वार है जो आत्मा को अधोगति प्रदान
करते हैं। अतः इनसे बचकर रहना चाहिए। काम का सेवन मर्यादित ढंग से ही करना चाहिए। मर्यादित ढंग से किया गया काम सेवन ब्रह्मचर्य के समान है।
लोभ बुरी बला है। यहाँ पाप का मूल है। यह नाश की ओर ले जाता है। अतः लोभ न करें। धन के लाभ में लोग कभी-कभी ऐसे-वैसे काम कर जाते हैं कि जान से हाथ धोना पड़ जाता है। 
अच्छा खाना मिलता है तो लोग लोभवश अधिक खा लेते हैं और अपच अजीर्ण आदि रोगों का शिकार हो जाते हैं। 

2c -काम, क्रोध, मद, लोभ सब नाश कर मूल :-

यानी काम, क्रोध मद और लोभ नाश का घर है क्रोध और लोभ की चर्चा तो मैं ऊपर कर आया हूँ। आदमी को मद भी नहीं करना चाहिए। मद नशा को कहते हैं। किसी भी नशे का सेवन ठीक नहीं है चाहे वह शराब हो या सिगरेट हो, या खैनी हो या बीड़ी हो या भांग हो या गाँजा हो या चरस हो या अफीम हो या ताड़ी हो या ब्राउन शुगर हो। कोई
भी नशा नशा है वह मनुष्य के स्वास्थ्य को बर्बाद कर देता है। अतः स्वास्थ्य की रक्षा करना हो तो कोई भी नशा का सेवन न करें।

3 - स्वस्थ रहने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करें :-

यथा संभव ब्रह्मचर्य का पालन करें। शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से लाभ मिलता है।
पूर्व किये गये सम्भोगकार्य का स्मरण, कामुक वार्तालाप, छेड़छाड़ (हँसी मजाक) छुप छुपकर कामुक दृश्य दर्शन, छुपकर कामुक बातें करना, काम क्रीडा करने का विचार करना, संभोग पूर्ति के साधन जुटाना और ऐसा कार्य करना जिससे काम वासना शांत या संभोग संभव हो जाए यह आठ प्रकार के कार्य ब्रह्मचारी को नष्ट करते हैं।
 आजकल ब्लू फिल्में देखना, गंदे साहित्य पढ़ना ,गंदे गंदे गाना गाना ,सुनना ।लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करना, कामुक वार्तालाप करना ,इत्यादि ।का फैशन बन गया है। जो स्वप्नदोष शीघ्रपतन धातु रोग आदि रोग का कारण होता है ।अतः स्वास्थ्य के लिए इनका त्याग करना जरूरी है। संयमित संभोग से कोई हानि नहीं है।

4 -विवाहित पुरुष महीने में एक बार सम्भोग करें :-

अगर एक बार से काम न चलें तो दो बार करें। यदि दो बार से भी काम न चले तो सप्ताह में एक बार यानी माह में चार
बार करें। शुरू-शुरू में जब नयी-नयी शादी हुई हो तो कुछ दिनों तक रोज और उसके बाद कुछ दिनों तक सप्ताह में दो बार फिर सप्ताह में एक बार ही करें। इससे अधिक सम्भोग न करें। अति सम्भोग से वीर्य का अतिनाश होता है। 
वीर्य के अधिक नाश हो जाने से शरीर दुबला हो जाता है। मुख सूख जाता है। अंगों में शिथिलता आ जाती है। बिना, परिश्रम के थकावट, क्लैव्य, शुक्र का अभाव, अण्डकोष में पीडा,
मैथुन करने पर देर से रक्त मिश्रित शुक्र का निकलना आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं लेकिन ये सारे विकार अति करने से होते हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिए संयम पूर्वक सम्भोग करें।
मैथुन भोजन के चार-पांच घंटे बाद ही करें ताकि ग्रहण किया हुआ भोजन अच्छी तरह पच जाये। भोजन के तुरन्त बाद मैथुन करने से अपच, अजीर्ण, गैस आदि रोग हो जाते हैं। तथा व्यक्ति शीघ्र थक जाता है और वीर्य जल्दी निकल जाता है। 
मैथुन के दो घंटे पूर्व एक गिलास गर्म दूध पीना अच्छा है।
 मैथुन के पश्चात् मूल त्याग, इन्द्रिय प्रक्षालन, कुल्ला करना तथा गर्म दूध का पान करना चाहिए।
 तीर्थ स्थान, देवस्थान, गुरू स्थान तथा नदी के जल में मैथुन नहीं करना चाहिए।
रुग्णा, कुरूप, योनि रोग ग्रस्त, वैश्या तथा कर्कश स्त्रियों के साथ सम्भोग नहीं करना चाहिए। 
मासिक धर्म के दौरान सम्भोग नहीं करना चाहिए।
मैथुन के समय भय, क्रोध, शोक, घृणा, चिन्ता, ईर्ष्या, जल्दबाजी इन सबको मन से निकाल देना चाहिए तथा प्रीतिपूर्वक मैथुन करना चाहिए।

4a -अकारण भयभीत ना रहे :-

भय करने से शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। मैथुन के समय भय करने से शीघ्रपतन हो जाता है या लिग से
कठोरता नहीं आती है। भय के कारण अतिसार या दस्त हो जाता है। भाई करने के कारण शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की कमजोरियां हो जाती है ।

5 - स्वस्थ रहने के लिए भोजन से संबंधित इन नियमों का पालन करें : - 

  •  अम्लीय (Acidic) खाद्य पदार्थों का सेवन कम से कम करें । क्षारीय खाद्य (alkaline) पदार्थों का सेवन अधिकाधिक करें। स्वस्थ शरीर के लिए 80 प्रतिशत क्षारीय तथा 20 प्रतिशत अम्लीय खाद्य पदार्थ चाहिए। 
  • नमक, वनस्पति घी और चीनी का सेवन कम से कम करें।
  • भोजन हमेशा समय पर करें। रात का भोजन सोने से तीन-चार घंटे पहले कर लिया करें हमेशा भूख से थोड़ा कम खाएं भूख की इच्छा न होने पर न खाए।
  • एक बार भोजन कर लेने के बाद 4 घंटे के भीतर दुबारा न खाएं पर 8 घंटे से अधिक देर भूखा भी न रहें। भोजन के 4-5 घंटे बाद हल्का नाश्ता जैसे कोई एक फल या एक गिलास जूस लिया जा सकता है।
  •  भोजन खूब चबाकर खाना चाहिए तथा भोजन प्रसन्नतापूर्वक करना चाहिए। भोजन उतना ही करें जितना पच सके। 
  • सदैव निश्चित मात्रा मे भोजन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। मात्रा का निर्धारण द्रव्यों के गुरुत्व और लघुत्व के आधार पर करना चाहिए। जितनी भूख हो उससे आधा ही भारी पदार्थों का सेवन करना चाहिए। लघु पदार्थों को इतने परिणाम में खाना चाहिए कि तृप्ति हो जाये। यही मात्रा का सर्वोत्तम परिणाम है कि उतना ही भोजन करें जितना पच सके।
  • स्वादिष्ट भोजन या मुफ्त का भोजन मिलने पर बहुत लोग ठूस-ठूसकर खाते हैं। यह उचित नहीं है स्वस्थ रहने के लिए हमेशा उचित मात्रा में ही भोजन करना चाहिए। भावप्रकाश का तो मत है कि पेट का आधा या दो भाग अन्न से भरें, पेट का चौथाई या तीसरा भाग जल से भरे, तथा पेट का एक चौथाई भाग वायु के गमनागमन के खाली रखें ।
  • अधिक मिर्च-मसालेदार, तले-भुने, तैलीय, वादी, बासी, तीखे नमकीन तथा खट्टे भोज्य पदार्थ न खाएं। 
  • भोजन में हरे साक, सब्जी, फल, दूध, मट्ठा अथिक मात्रा में लें, चोकर समेत आंटे की रोटी खाएं। 
  • चावल बिना पालिश किया हुआ हो । मांस, अंडे खाना ठीक नहीं। शुद्ध शाकाहार ही लें। मैदा, पालिस किया हुआ चावल, बेसन तथा दालें कम खाएं। 
  • अंकुरित चना, गेहूं, मूंग अवश्य खाएं।
  •  ध्यान रखें संसार में तीन जहर हैं चीनी, चिकनाई और नमक।
  • भोजन के समय चिन्ता, क्रोध, मय, लज्जा ईयां, घृणा, शोक एवं हड़बड़ाना त्याग दें।
  • प्रसन्न मन से खूब चबाकर भोजन करें।
  • रोज कम से कम 10-12 ग्लास पानी अवश्य पीएं। पानी पीने से शरीर के हानिकारक पदार्थ पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाते है । तथा वात पित्त दोष दूर होने है। परन्तु एक बार अधिक पानी न पीकर थोड़ा-थोड़ा करके कई बार पानी पीना चाहिए। भोजन के तुरन्त पहले या तुरन्त बाद में पानी न पीएं। हाँ बीच में थोड़ा पानी पी सकते हैं। कहा गया है इनडाइजेशन या अपच होने पर पानी पीने से औषधि का काम करता है। भोजन के पच जाने पर पानी पीना शक्तिदायक होता है। भोजन के बीच में पानी पीना अमृत के समान गुणकारी है पर भोजन के अन्त में पानी पीना जहर के समान हानिकारक है।
  •  भोजन न तो अधिक गर्म हो और न ही अधिक ठंडा हो। बहुत से लोग इतना अधिक गर्म भोजन करते है कि ठीक से चबा भी नहीं पाते हैं। अति गर्म भोजन करने से मुंह, आंत आदि में छाले पड़ने का डर रहता है। भोजन अधिक  ठंडा भी नहीं होना चाहिए। भोजन समशीतोष्ण एवं ताजा होना चाहिए।
  • भोजन के बाद कुछ देर (15-20 मिनट तक) विश्राम करना चाहिए। भोजन को बाद बायी करवट लेटना अथवा वज्रासन में बैठना अच्छा रहता है। 
  • रात्रि का भोजन के बाद थोड़ा टहला करें। भोजन के तुरन्त बाद सोना ठीक नहीं है।
  • रुचि के विरुद्ध भोजन तथा इच्छा न होने पर भोजन नहीं करना चाहिए। जो भोजन रुचिकर लगे तथा जब इच्छा हो तभी भोजन करना चाहिए
  •  संयोग विरुद्ध आहार न ग्रहण करें। जैसे-बैगन + दूध या मछली दूध या दूध + सत्तू या दही+ मूली या समभाग मधु घृत न खाएं।
  • भोजन के पूर्व तथा पश्चात् हाथ-मुह अच्छी तरह धोकर साफ कर लेना चाहिए तथा कुल्ला कर लेना चाहिए ताकि दातों में अन्न का कोई कण चिपका हो तो निकला जाए।
  •  भोजन के शुरू में मधुर रस वाले पदार्थों को ग्रहण करना चाहिए. उसके बाद अम्ल (खट्ट) एवं लवण (नमकीन) रस वाले पदार्थों को ग्रहण करना चाहिए और अन्त में शेष तीन रसों (कटु-तिक-कवाय) वाले पदार्थो को ग्रहण करना चाहिए।
  •  भावप्रकाश का मत है कि भोजन की समाप्ति दूध पीकर करनीचाहिए , परन्तु भोजन के अन्त में दही का सेवन कभी नहीं करना चाहिए ।क्योंकि भोजन में खाये गये लवण-अम्ल-कटु-उष्ण एवं विदाही पदार्थों के दोषों का निवारण करने के लिए भोजन के अन्त में मधुर पदार्थ खाना चाहिए ।
  • भोजन के पहले नमक और अदरख खाना सदा हितकारी होता है क्योंकि इससे अग्नि प्रदीप्त होती है, भोजन में रुचि बढ़ती है तथा जिहवा एवं कण्ठ की शुद्धि होती है। 
  • भोजन के अन्त में तक्र यानी मट्ठा पीना चाहिए, रात में सोते समय दूध पीना चाहिए तथा सुबह उठकर पानी पीना चाहिए- ऐसा करने से व्यक्ति नीरोग रहता है। पर अम्लपित्त के रोगियों को इसका सेवन वर्जित है।
  • थके हुए व्यक्ति को तुरन्त भोजन नहीं करना चाहिए. व्यायाम के तुरन्त बाद भी भोजन नहीं करना चाहिए तथा विषम आसन में भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है।
  • बहुत से लोग परिश्रम करके आते हैं और तुरन्त भोजन के लिए बैठ जाते हैं। ऐसा करना ठीक नहीं है। पहले कुछ देर आराम कर लेना चाहिए उसके बाद भोजन करना चाहिए। 
  • बहुत से लोग ऊकडू बैठकर (जिस तरह बैठकर शौच त्याग करते हैं) भोजन करते हैं। ऐसा करना भी स्वास्थ्य दृष्टिसे ठीक नहीं है। ऊकडू बैठने पर दोनों पांवों से पेट दब जाता है। अतः भोजन पलथी मारकर बैठकर करना अच्छा है।
  • सुबह का नाश्ता हल्का होना चाहिए। सुबह गरिष्ठ भोजन नहीं लेना चाहिए। क्योंकि सुबह अग्नि दीप्त नहीं रहती है।
  • समय-समय पे उपवास करते रहना चाहिए। उपवास करने से आंतो को आराम मिलता है। उनकी जीवनी शक्ति बढ़ती है। और शारीरिक मानसिक विकार दूर होते हैं। उपवास के समय केवल नींबू पानी या नींबू पानी शहद ही लेना चाहिए।  उपवास के बाद रस आहार लेना चाहिए और उसके बाद फलाहार लेना चाहिए। गरिष्ठ भोजन नहीं खाना चाहिए। कुछ लोग सिंघाड़े का हलवा, साबूदाने की खीर ,मूंगफली का हलवा आदि खाते हैं जो आंतो के लिए सही नहीं होता है । जब उपवास स्वास्थ्य रहने की दृष्टि से की गई हो तो उसमें केवल नींबू- पानी नींबू -पानी -शहद ही लेना चाहिए ।और कुछ नहीं।

6 -स्वस्थ रहने के लिए स्नान करने के नियम :-

नियमित स्नान करने से हमारी त्वचा स्वस्थ रहती है । और हममें स्फूर्ति भी बनी रहती है ।स्नान करने से पूर्व शरीर पर तेल की मालिश अवश्य करें। यदि संभव हो सके तो तेल मालिश का काम धूप में खड़े होकर करें, ताकि शरीर को विटामिन डी पर्याप्त मात्र मैं मिल सके। अगर रोज संभव नहीं हो तो सप्ताह में एक-दो दिन तो जरूर मालिश करें। शरीर मालिश करने से वात रोग दूर होते हैं। सभी अंग मजबूत होते हैं। बुढ़ापा दूर रहता है। और शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है।
रोज सुबह शाम स्नान करना चाहिए। अगर साम मे नहीं कर सकते ,तो सुबह अवश्य करें। स्नान करने से थकान , अनिद्रा खुजली ,पसीना आना, प्यास लगना ,आदि शांत होता है ।स्नान करने से शरीर का मैल धुल जाता है और सभी इंद्रियां शुद्ध हो जाती हैं। स्नान करने से आलस और पाप नष्ट होता है। इसलिए प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।

7 -स्वस्थ रहने के लिए निम्न शारीरिक वेगों को ना रोके :- 

हमारे शरीर की बहुत सी क्रियाएं ऐसी होती है जो समय समय पर होते रहना आवश्यक है। और विशेषकर जब वह मुक्त होने के लिए प्रस्तुत हो रही हो, तब उसे रोकना शरीर के लिए हानिकारक होता है ।शारीरिक बेगों जैसे मल, मूत्र , वीर्य, गैस , उल्टी ,ड़कार,जम्हाई, भूख, प्यास, आंसू, थकान से होने वाली जम्हाई आदि शारीरिक बेगों को नहीं रुकना चाहिए। क्योंकि इनके रोकने से कई प्रकार के रोग होते हैं।

8 -उत्तम स्वास्थ्य के लिए छोटे किंतु जरूरी नियम :-

  • बुखार पतले दस्त आदि रोगो मे  तुरंत दवाई नहीं लेनी चाहिए ऐसा करने से विकार या गंदगी शरीर में ही दफन रह जाता है । जो आगे चलकर बड़ा रोग पैदा करते हैं।
  •  थोड़ी-थोड़ी बीमारी सर्दी जुकाम आदि में एंटीबायोटिक  ना लें। इन के साइड इफेक्ट बहुत ही खतरनाक होते हैं। अपने मन से दबा ना ले । कोई भी दवा लेने के पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें ।
  • over-the-counter ड्रग ना लें क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है जान भी जा सकती है। अपने जीवन और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना ठीक नहीं है। इसलिए कोई भी दवाई अपने मन के मुताबिक न लें।
  •  दोनों समय लैट्रिन जरूर जाएं। लैट्रिन करते समय जोर ना लगाएं ।चाहे सौंच हो या ना हो ।सौंच के बाद साबुन से हाथ को अवश्य साफ करें ।संभव हो तो स्नान भी करें।
  •  नियमित रूप से बाल और नाखूनों कटवाते रहे। है। बालों में कंघी करते रहना चाहिए ।
  • पैरों की सुरक्षा के लिए उपयुक्त जूते आदि का इस्तेमाल करें।
  •  मन को शांति और संतुलित रखने के लिए नियमित रूप से उपासना आवश्यक है ।
  • अभिवादन सील बने ,वृद्धों और जरूरतमंदों की सेवा करें। इससे आयु, विद्या, बल और यश की प्राप्ति होती है।









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